दहेज उत्पीड़न: बेटी होने पर घर से निकाला, पीड़िता न्याय के लिए भटक र
1 min readदिल्ली के जाफराबाद इलाके की रहने वाली आयशा, पुत्री स्व. मोहम्मद हनीफ, ने अपने पति व ससुराल पक्ष पर दहेज उत्पीड़न और शारीरिक प्रताड़ना का गंभीर आरोप लगाया है। आयशा का कहना है कि उसके पति साबिर मलिक, पुत्र सागीर मलिक, और उनके परिवार ने शादी के बाद से ही उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया।
पीड़िता, जो गली नंबर 3, दरबार होटल के पास, मौजपुर की निवासी है, ने बताया कि दहेज की मांग पूरी न करने पर उसके पति, सास-ससुर और देवर ने उसे मारपीट कर घर से निकाल दिया। जब उसने बेटी को जन्म दिया, तो ससुराल वालों ने बेटी होने का ताना देते हुए उसकी जिंदगी और भी कठिन बना दी। आयशा का कहना है, “बेटी होने पर मेरे पति और ससुराल वालों ने मुझे अपमानित किया और घर से निकाल दिया।”
स्थानीय पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल
आयशा ने अपनी शिकायत जाफराबाद थाने में दर्ज कराई, लेकिन पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। पीड़िता का आरोप है कि स्थानीय बीट अफसर उत्तम कुमार और थाना प्रशासन ने मामले की निष्पक्ष जांच करने के बजाय आरोपियों को बचाने का प्रयास किया।
पीड़िता का कहना है कि घटना के कई दिनों बाद भी पुलिस ने न तो आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की और न ही उसे न्याय दिलाने की कोई ठोस पहल की। आयशा ने सवाल उठाया, “क्या दहेज उत्पीड़न और बेटी होने पर भेदभाव के खिलाफ न्याय पाना भी अब असंभव हो गया है?”
दहेज और लैंगिक भेदभाव पर समाज को सोचने की जरूरत
यह घटना न केवल दहेज प्रथा की कड़वी सच्चाई को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि किस तरह बेटी को अभिशाप मानने की सोच आज भी समाज में जड़ें जमाए हुए है।
इस मामले में स्थानीय पुलिस की निष्क्रियता ने पीड़िता को न्याय पाने की लड़ाई में अकेला छोड़ दिया है। क्या कानून और प्रशासन का दायित्व केवल कागजों तक सीमित रह गया है? यह सवाल न केवल पुलिस की कार्यशैली पर बल्कि समाज की संवेदनहीनता पर भी गहरी चोट करता है।
आयशा को अब भी उम्मीद है कि उसे न्याय मिलेगा और दोषियों को सजा दी जाएगी। लेकिन यह घटना यह भी दर्शाती है कि न्याय के लिए पीड़िताओं को कितना लंबा संघर्ष करना पड़ता है।
(रिपोर्ट: स्वदेश प्रेम)