फर्जी पत्रकारिता: पत्रकारिता की साख पर संकट
1 min read स्वदेश प्रेम,सावांदाता
पत्रकारिता, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, आज फर्जी पत्रकारों की गतिविधियों के कारण गहरे संकट का सामना कर रही है। सूचना और डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रसार ने जहां सही जानकारी तक पहुंचना आसान बनाया है, वहीं इसका दुरुपयोग कर कुछ लोग पत्रकारिता की गरिमा को ठेस पहुंचा रहे हैं।
फर्जी पत्रकारों की पहचान और उनके दुष्प्रभाव
1.फर्जी प्रेस कार्ड और यूट्यूब चैनल: आज कई लोग बिना किसी वैध पहचान और मान्यता के फर्जी प्रेस कार्ड लेकर पत्रकार बन रहे हैं। कुछ लोग यूट्यूब चैनलों के माध्यम से छोटे व्यापारियों, पुलिसकर्मियों, और अन्य लोगों को ब्लैकमेल कर रहे हैं।
2.योग्यता और अनुभव का अभाव: अशिक्षित और अनपढ़ व्यक्ति पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं, जिनका उद्देश्य पत्रकारिता के मूल्यों का पालन करना नहीं, बल्कि व्यक्तिगत लाभ अर्जित करना है।
3.वास्तविक पत्रकारों की बदनामी: इन फर्जी पत्रकारों के कारण असली पत्रकारों की साख और विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं।
डिजिटल मीडिया का बढ़ता प्रभाव और चिंता
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर यूट्यूब और सोशल मीडिया के जरिए चैनल बनाना आज इतना आसान हो गया है कि कोई भी खुद को पत्रकार कह सकता है। इससे पत्रकारिता का स्तर गिरा है और फर्जी पत्रकारों की संख्या में वृद्धि हुई है।
समस्या के समाधान के लिए आवश्यक कदम
1.प्रेस कार्ड और चैनल की प्रमाणिकता:
•प्रत्येक पत्रकार को सूचना और प्रसारण मंत्रालय या आरएनआई से मान्यता प्राप्त प्रेस कार्ड होना अनिवार्य किया जाए।
•यूट्यूब और डिजिटल चैनलों का पंजीकरण अनिवार्य हो और उनके सत्यापन के लिए कठोर प्रक्रिया बनाई जाए।
2.कानूनी दंड:
•फर्जी पत्रकारों और उनकी अवैध गतिविधियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई हो।
•पुलिस प्रशासन को ऐसे लोगों को रिपोर्ट करने की शक्ति दी जाए।
3.जागरूकता अभियान:
•जनता को यह सिखाना आवश्यक है कि वे कैसे फर्जी पत्रकारों को पहचानें।
•असली पत्रकारों और प्रमाणित संस्थानों की पहचान की प्रक्रिया जनता को बताई जाए।
4.डिजिटल मीडिया के लिए नियम:
•सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर चैनल शुरू करने वालों के लिए पंजीकरण और प्रमाणन अनिवार्य हो।
•फर्जी वीडियो बनाकर ब्लैकमेल करने वालों पर तत्काल रोक लगाई जाए।
निष्कर्ष
फर्जी पत्रकारों की बढ़ती गतिविधियां न केवल पत्रकारिता की गरिमा को गिरा रही हैं, बल्कि समाज में अविश्वास का वातावरण भी बना रही हैं। असली पत्रकारों और वास्तविक मीडिया संस्थानों को इस समस्या के खिलाफ आवाज उठानी होगी।
सरकार, सूचना प्रसारण मंत्रालय, और बड़े डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को इस दिशा में कड़े कदम उठाने होंगे ताकि पत्रकारिता का वास्तविक स्वरूप और उसकी गरिमा बचाई जा सके। जनता को भी जागरूक बनाना जरूरी है ताकि वे फर्जी पत्रकारों की पहचान कर सकें और समाज में उनकी गतिविधियों को रोक सकें।
पत्रकारिता की साख और लोकतंत्र की गरिमा को बचाने के लिए यह प्रयास हर स्तर पर जरूरी है।