प्रसिद्ध कवि एवं शिक्षाविद डॉ. संत कुमार शर्मा को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित
1 min readस्वदेश प्रेम/दिल्ली
हिन्दी भाषा और साहित्य को समर्पित अपने सुदीर्घ योगदान के लिए देश के प्रख्यात शिक्षाविद और कवि डॉ. संत कुमार शर्मा को विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ द्वारा ‘विद्यावाचस्पति’ डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है। यह उपाधि उनके हिन्दी साहित्य, शिक्षा और शोधकार्य के प्रति समर्पण को सम्मानित करती है। डॉ. शर्मा का यह सम्मान न केवल उनके लिए, बल्कि हिन्दी भाषा और साहित्य के लिए गर्व का विषय है।
हिन्दी साहित्य और शिक्षा में अद्वितीय योगदान
डॉ. संत कुमार शर्मा का साहित्यिक और शैक्षणिक योगदान वर्षों से हिन्दी प्रेमियों को प्रेरित कर रहा है। उनकी रचनाएं ‘गुलदस्ता,’ ‘कण-कण होगा मलियाली’ और ‘ताण्डव आकांक्षा’ जैसे काव्य संग्रह हिन्दी काव्य की नई ऊंचाइयों को परिभाषित करती हैं। इसके साथ ही उनका शोध ‘कामायनी की दार्शनिकता’ हिन्दी साहित्य में एक मील का पत्थर माना जाता है। सरल भाषा में लिखी उनकी पुस्तक ‘हिन्दी भाषा एवं व्याकरण’ छात्रों और अध्यापकों के लिए एक अमूल्य संसाधन है।
शिक्षा के क्षेत्र में नेतृत्व
डॉ. शर्मा ने अपने साहित्यिक योगदान के साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शिक्षक प्रशिक्षण और शिक्षा को सशक्त बनाने में उनका योगदान उल्लेखनीय है। वे छात्रों को न केवल भाषा सिखाने के लिए बल्कि उसमें छिपी मानवीय संवेदनाओं को समझने के लिए प्रेरित करते हैं।
सम्मान और उपलब्धियां
डॉ. शर्मा को इससे पहले भी कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें दिल्ली हिन्दी अकादमी और दिल्ली संस्कृत अकादमी द्वारा साहित्य और शिक्षा में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त, नवोदय विद्यालय समिति ने उन्हें ‘गुरुश्रेष्ठ’ सम्मान प्रदान किया। ये सम्मान उनके साहित्यिक और शैक्षणिक कार्यों की व्यापक स्वीकृति को दर्शाते हैं।
हिन्दी भाषा का वैश्विक प्रचार-प्रसार
डॉ. शर्मा का योगदान केवल देश तक सीमित नहीं है। उन्होंने हिन्दी भाषा को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के लिए सतत प्रयास किए हैं। उनकी कविताएं और लेख मानव मूल्यों, सामाजिक मुद्दों और जीवन दर्शन पर गहरी दृष्टि डालती हैं, जिससे हिन्दी साहित्य का स्वर वैश्विक मंच पर और सशक्त हुआ है।
प्रेरणा के स्रोत
डॉ. संत कुमार शर्मा न केवल एक कवि या शिक्षक हैं, बल्कि हिन्दी भाषा और संस्कृति के संरक्षक हैं। उनका जीवन और कर्मशीलता आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है। वे यह सिद्ध करते हैं कि जब एक व्यक्ति अपनी मातृभाषा के प्रति निष्ठा और समर्पण के साथ कार्य करता है, तो वह असंभव को भी संभव बना सकता है।
निष्कर्ष
डॉ. शर्मा का यह सम्मान हर हिन्दी प्रेमी के लिए गौरव की बात है। उनकी साधना और समर्पण ने हिन्दी को एक नई दिशा दी है। हिन्दी भाषा, जो हमारी संस्कृति और पहचान का अभिन्न हिस्सा है, को समृद्ध बनाने में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। डॉ. संत कुमार शर्मा का यह सम्मान, उनकी साधना का प्रतीक है और यह हिन्दी भाषा के प्रति उनकी निष्ठा को सलाम करता है।
(स्वदेश प्रेम, राष्ट्रीय हिन्दी समाचार पत्र)