राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संस्थान (NIHFW), मुनिरका, दिल्ली में यौन शोषण, रिश्वतखोरी और भेदभाव के गंभीर आरोप, प्रशासन पर दोषियों को बचाने का आरोप
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स्वदेश प्रेम / दिल्ली
स्वदेश प्रेम ब्यूरो
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान (NIHFW) में यौन शोषण, भ्रष्टाचार, और अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) व अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के कर्मचारियों के शोषण के गंभीर आरोप लगे हैं। संस्थान के प्रोफेसर मनीष चतुर्वेदी पर यौन शोषण और रिश्वत लेने के कई आरोप हैं, लेकिन 9 महीने बीत जाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके उलट उन्हें सतर्कता अधिकारी एवं विभागाध्यक्ष के पद पर रख कर और अधिक शक्तिशाली बना दिया गया है।
संस्थान के सतर्कता अधिकारी के पद पर रहते हुए, उन्होंने डॉ. जेपी शिवदेसानी (उन्होंने अपनी पत्नी की प्रिंटिंग एजेंसी के कई बिल पारित किए) सहित कई भ्रष्ट कर्मचारियों की गलत सतर्कता मंजूरी दी है, जिनके खिलाफ आरटीआई कार्यकर्ता और एनआईएचएफडब्ल्यू कर्मचारी डॉ. बीसी पात्रो द्वारा कई लिखित शिकायतें प्रस्तुत की गई हैं।
संस्थान की वरिष्ठ महिला डॉक्टरों की यौन उत्पीड़न की शिकायतों को दबा दिया गया
संस्थान में कई महिला डॉक्टरों ने प्रो. मनीष चतुर्वेदी के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायतें दर्ज कराईं, लेकिन प्रशासन ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया।
• डॉ. मेजर रश्मि और डॉ. सुप्रिया गंभीर ने यौन उत्पीड़न की लिखित शिकायत की थी, लेकिन निदेशक ने कोई कदम नहीं उठाया।
• डॉ. रश्मि भारतीय सेना की वरिष्ठ डॉक्टर और पूर्व मेजर हैं। डॉ. मनीष की हिम्मत इतनी बुलंद है कि उन्होंने ऐसे वरिष्ठ अधिकारी का यौन उत्पीड़न करने में संकोच नहीं किया, जो भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारी की पत्नी हैं। उनके अधीन काम करने वाले एमडी छात्रों और अन्य कर्मचारियों की सुरक्षा बहुत जोखिम में है। हाल ही में, उनके अधीन काम करने वाली एक पीएचडी छात्रा ने भी पत्र लिखकर खुद को उनके मार्गदर्शन से स्थानांतरित करवा लिया है क्योंकि वह व्यक्तिगत टिप्पणी कर रहे थे।
• डॉ. सुप्रिया गंभीर ने अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न की शिकायत निदेशक से की थी, लेकिन निदेशक ने करीब 9 महीने तक उनकी शिकायत को नजरअंदाज किया और जब डॉ. सुप्रिया ने POSH समिति से शिकायत की, तो समिति द्वारा स्वतः संज्ञान लेते हुए शिकायत दर्ज की गई, वह भी प्रारंभिक शिकायत के दस महीने बाद। आंतरिक शिकायत समिति की जांच के बाद डॉ. मनीष को दोषी पाया गया और समिति ने उन्हें निलंबित कर विस्तृत जांच करने की सिफारिश की है। लेकिन निदेशक और MOHFW के वरिष्ठ अधिकारी अनैतिक रूप से उन्हें बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
• डॉ. प्रतिभा डबास ने भी ईमेल के माध्यम से शिकायत दी थी, लेकिन निदेशक ने उसे दबा दिया और कोई कार्रवाई नहीं की। और माहौल इतना कठिन और विषाक्त बना दिया गया कि उन्हें केवल तीन महीने का विस्तार देकर अपमानित किया गया। उन्हें पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा
• जब जांच समिति ने प्रो. मनीष चतुर्वेदी को सस्पेंड कर आगे की कार्रवाई करने की सिफारिश की, तब भी प्रशासन ने उसे रोक दिया।
• डॉ. टी. बीर , उत्तम सिंह और डॉ. विभा स्वरूप ने गवाही दी, लेकिन उन्हें और कई अन्य गवाहों को नौकरी से निकाल दिया गया। लेकिन अपराधी को सस्पेंड न करके पद पर बनाए रखा गया। उसने बदला लिया है और या तो एक्सटेंशन नहीं दिया या गलत तरीके से हटाया गया। शिकायतकर्ताओं और गवाहों की सुरक्षा करना प्रशासन की जिम्मेदारी थी, लेकिन अपराधी मनीष को सत्ता के विभिन्न पदों पर बनाए रखकर प्रशासन ने यह सुनिश्चित कर दिया कि सभी शिकायतकर्ता और गवाह बर्खास्त कर दिए गए हैं।
• सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि दोषी के पक्ष में गवाही देने वाली डॉ. गीतांजलि को ही POSH कमेटी का चेयरमैन बना दिया गया, जबकि वह दोषी से जूनियर हैं।
रिश्वतखोरी के आरोप: घूस लेने का सबूत देने के बाद भी कार्रवाई नहीं
• डॉ. गौरव झा ने प्रो. मनीष शेट्टी ने रिश्वत के तौर पर एप्पल आईफोन लेने की लिखित शिकायत और फोटो के साथ सबूत के तौर पर डायरेक्टर को शिकायत दी थी, लेकिन अब तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है। किसी व्यक्ति को अब भी सतर्कता अधिकारी के पद पर कैसे बरकरार रखा जा सकता है, जबकि उसके खिलाफ इतनी ठोस शिकायतें आई हैं, वह भी लिखित और ठोस सबूतों के साथ। इसके बावजूद, मनीष चतुर्वेदी को सतर्कता अधिकारी के पद पर बनाए रखा गया, जिससे यह साफ है कि प्रशासन खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है।
पीड़ितों ने प्रशासन पर पक्षपात और अन्याय का लगाया आरोप
संस्थान के पीड़ित कर्मचारियों का कहना है कि यहां न्याय नहीं बल्कि आरोपियों को बचाने का खेल चल रहा है।
एक पीड़िता ने कहा:
“हमारी शिकायतें महीनों से लंबित हैं, लेकिन दोषियों को बचाने के लिए पूरी प्रशासनिक ताकत झोंक दी गई है। यह केवल यौन उत्पीड़न ही नहीं, बल्कि महिलाओं की गरिमा और न्याय व्यवस्था का मजाक उड़ाने जैसा है।”
SC/ST/OBC कर्मचारियों के साथ भेदभाव के आरोप
संस्थान में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के कर्मचारियों के साथ भी गंभीर भेदभाव किया जा रहा है।
• लखन लाल मीणा और बच्चू सिंह जैसे कर्मचारियों को प्रमोशन से वंचित रखा गया।
पक्षपात और एससी/एसटी उत्पीड़न का स्तर इस स्तर पर है बाबा साहब अम्बेडकर का फोटो संस्थान के मुख्य स्वागत कक्ष और सभागार से हटा दिया गया है। डीन डॉ. वीके तिवारी और डॉ. मनीष चतुर्वेदी खुलेआम सार्वजनिक रूप से गाली-गलौज करते हैं और कहते हैं कि वे एससी/एसटी समुदाय के लोगों को नौकरी से निकाल देंगे। सालो से यहाँ अम्बेडकर जयंती नहीं मनाई जाती है
• आरोप है कि डीन प्रो. वी. के. तिवारी, प्रो. मनीष चतुर्वेदी और निदेशक प्रो. धीरज शाह की मिलीभगत से यह भेदभाव हो रहा है।
राष्ट्रीय महिला आयोग और मंत्रालय ने भी नहीं लिया संज्ञान
इन सभी अवैध गतिविधियों और उत्पीड़न की शिकायतें कई शिकायतकर्ताओं और गवाहों द्वारा एनसीडब्ल्यू और सचिव, निदेशक प्रशिक्षण, संयुक्त सचिव, सहायक सचिव सहित एमओएचएफडब्ल्यू मंत्रालय के कई वरिष्ठ अधिकारियों को बार-बार भेजी जा रही हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW), स्वास्थ्य मंत्रालय, संयुक्त सचिव और अतिरिक्त सचिव ने अब तक कोई कदम नहीं उठाया।
सख्त जांच और कार्रवाई की मांग
संस्थान में लगातार हो रहे यौन शोषण, भ्रष्टाचार और भेदभाव के मामलों पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। पीड़ितों, गवाहों और सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
(स्वदेश प्रेम न्यूज)